• Home
    • Home – Layout 1
    • Home – Layout 2
    • Home – Layout 3
    • Home – Layout 4
    • Home – Layout 5
Saturday, December 6, 2025
31 °c
Ujjain
27 ° Sat
27 ° Sun
27 ° Mon
26 ° Tue
  • Setup menu at Appearance » Menus and assign menu to Main Navigation
  • Setup menu at Appearance » Menus and assign menu to Main Navigation
No Result
View All Result
  • Setup menu at Appearance » Menus and assign menu to Main Navigation
No Result
View All Result
Ujjain
No Result
View All Result
Home मुखपृष्ठ
जाने वो कौन सा देस जहाँ तुम चले गए ..

जाने वो कौन सा देस जहाँ तुम चले गए ..

by Admin
October 10, 2017
in मुखपृष्ठ, विशेष
0
0
SHARES
54
VIEWS
Share on FacebookShare on Twitter

वो कागज की कश्ती’, ‘झुकी झुकी सी नजर’, ‘होंठों से छू लो तुम’ ये तमाम ग़ज़लें सुनते हुए यकीकन आपके जेहन में जगजीत सिंह का चेहरा ताजा हो जाता होगा. इस तरह की सैकड़ों गजल गाने वाले गजल सम्राट जगजीत सिंह की आज छठी पुण्यतिथि है. जगजीत सिंह की भारी और दर्द से भरी आवाज की वजह से गजल गायकी में दूसरा कोई उनका सानी नहीं है.

खालिस उर्दू जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली, नवाबों-रक्कासाओं की दुनिया में झनकती और शायरों की महफ़िलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती ग़ज़लों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को पहले पहल दिया जाना हो तो जगजीत सिंह का ही नाम ज़ुबां पर आता है। उनकी ग़ज़लों ने न सिर्फ़ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की समझ में इज़ाफ़ा किया बल्कि ग़ालिब, मीर, मजाज़, जोश और फ़िराक़ जैसे शायरों से भी उनका परिचय कराया।

उनका जन्म राजस्थान के श्रीगंगानगर में हुआ था और उनका असली नाम जगमोहन सिंह धीमन था. 1970 और 1980 के दशक में उन्होंने अपनी पत्नी चित्रा सिंह के साथ एक से एक बेहतरीन गजलें गाईं और देश-विदेश में अपनी आवाज का डंका बजाया.

बचपन में अपने पिता से संगीत विरासत में मिला। गंगानगर में ही पंडित छगन लाल शर्मा के सानिध्य में दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखने की शुरूआत की। आगे जाकर सैनिया घराने के उस्ताद जमाल ख़ान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखीं। पिता की ख़्वाहिश थी कि उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाए लेकिन जगजीत पर गायक बनने की धुन सवार थी। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत में उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफ़ेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह जी को काफ़ी उत्साहित किया। उनके ही कहने पर वे १९६५ में मुंबई आ गए। यहां से संघर्ष का दौर शुरू हुआ। वे पेइंग गेस्ट के तौर पर रहा करते थे और विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाकर या शादी-समारोह वगैरह में गाकर रोज़ी रोटी का जुगाड़ करते रहे।

१९६७ में चित्रा सिंह और जगजीत सिंह की मुलाकात एक रेडियो विज्ञापन की रिकॉर्डिंग के दौरान हुई थी. हालांकि जगजीत सिंह की भारी आवाज की वजह से ने चित्रा ने पहले तो उनके साथ गाने से ही मना कर दिया था. इस तरह दोस्ती हुई और फिर यह दोस्ती जीवन भर के संबंध में तब्दील हो गई. १९६९ में दोनों परिणय सूत्र में बंध गए।

लेकिन 1990 में एक ट्रेजडी ने दोनों को एकदम खामोश कर दिया. जगजीत और चित्रा के बेटे विवेक का कार हादसे में निधन हो गया. इस वजह से जगजीत सिंह छह महीने तक एकदम खामोश हो गए जबकि चित्रा सिंह इस हादसे से कभी उबर नहीं पाईं और उन्होंने गायकी छोड़ दी. लेकिन जगजीत ने कुछ समय बाद खुद को संभाला और इस हादसे के बाद गाई गईं उनकी गजलों में बेटे को खो देने का दर्द साफ झलकता था.
जगजीत सिंह ने ग़ज़लों को जब फ़िल्मी गानों की तरह गाना शुरू किया तो आम आदमी ने ग़ज़ल में दिलचस्पी दिखानी शुरू की लेकिन ग़ज़ल के जानकारों की भौहें टेढ़ी हो गई। परंपरागत गायकी के शौकीनों को शास्त्रीयता से हटकर ये प्रयोग चुभ रहे थे। आरोप था कि जगजीत सिंह ने ग़ज़लों के साथ छेड़खानी की। लेकिन वो अपनी सफ़ाई में हमेशा कहते रहे हैं कि उन्होंने प्रस्तुति में थोड़े बदलाव ज़रूर किए हैं लेकिन लफ़्ज़ों से छेड़छाड़ बहुत कम किया है। उन्होंने बहुत से मौकों पर ग़ज़ल के कुछ भारी-भरकम शेरों को हटाकर इसे छह से सात मिनट तक समेट लिया और संगीत में डबल बास, गिटार, पिआनो का चलन शुरू किया लेकिन यह भी ध्यान रखाकि आधुनिक और पाश्चात्य वाद्ययंत्रों के इस्तेमाल में सारंगी, तबला जैसे परंपरागत साज पीछे नहीं छूटे।
प्रयोगों का सिलसिला यहीं नहीं रुका बल्कि तबले के साथ ऑक्टोपेड, सारंगी की जगह वायलिन और हारमोनियम की जगह कीबोर्ड ने भी ली। ‘कहकशां’ और ‘फ़ेस टू फ़ेस’ संग्रहों में जगजीत जी ने कोरस का अनोखा प्रयोग किया। जगजीत सिंह पहले ग़ज़ल गुलुकार थे जिन्होंने चित्रा जी के साथ लंदन में पहली बार डिजीटल रिकॉर्डिंग करते हुए ‘बियॉन्ड टाइम’ अलबम जारी किया।
इतना ही नहीं, जगजीत जी ने क्लासिकी शायरी के अलावा साधारण शब्दों में ढली आम-आदमी की जिंदगी को भी सुर दिए। ‘अब मैं राशन की दुकानों पर नज़र आता हूं’, ‘मैं रोया परदेस में’, ‘मां सुनाओ मुझे वो कहानी’ जैसी रचनाओं ने ग़ज़ल न सुनने वालों को भी अपनी ओर खींचा। शायर निदा फ़ाज़ली, बशीर बद्र, गुलज़ार, जावेद अख़्तर जगजीत सिंह जी के पसंदीदा शायरों में हैं। जगजीत सिंह को सन २००३ में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

ब्रेन हैमरेज होने के कारण 23 सितम्बर २०११ को उन्हें मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। ब्रेन हैमरेज होने के बाद जगजीत सिंह की सर्जरी की गई, जिसके बाद से ही उनकी हालत गंभीर बनी हुई थी। वे तबसे आईसीयू वॉर्ड में ही भर्ती थे। जिस दिन उन्हें ब्रेन हैमरेज हुआ, उस दिन वे सुप्रसिद्ध गजल गायक गुलाम अली के साथ एक शो की तैयारी कर रहे थे। १० अक्टूबर २०११ की सुबह 8 बजे मुंबई में उनका देहांत हो गया। मृत्युपरांत, फरवरी २०१४ में जगजीत सिंह के सम्मान व स्मृति में दो डाक टिकट भी जारी किए गए।

जगजीत सिंह की ग़ज़लें सुनते हुए एक मखमली अहसास कानों के रास्ते रूह के भीतर तक बहने लगा है। गजलों के शहंशाह जगजीत सिंह तो अब हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनकी आवाज आज भी सुनने वालों को बेहद सुकून देती है।

Admin

Admin

Related Posts

बिना इंटरनेट के UPI भुगतान कैसे करें

बिना इंटरनेट के UPI भुगतान कैसे करें

by Admin
July 13, 2024
0
95

भारत में तीव्र इंटरनेट पर UPI की शुरुआत ने फ़ोन उपयोगकर्ताओं के भुगतान के तरीके को बदल दिया है। इसकी...

अगस्त्य संहिता का विद्युत्-शास्त्र

अगस्त्य संहिता का विद्युत्-शास्त्र

by Admin
June 12, 2024
0
107

सामान्यतः हम मानते हैं की विद्युत बैटरी का आविष्कार बेंजामिन फ़्रेंकलिन ने किया था, किन्तु आपको यह जानकार सुखद आश्चर्य...

देह दान : सवाल – जवाब

देह दान : सवाल – जवाब

by Admin
June 11, 2024
0
96

Q. देहदान क्यों आवश्यक है? A. समाज को कुशल चिकित्सक देने हेतु उसको मानव शरीर रचना का पूरा ज्ञान होना...

उज्जैन की कचौरियां

उज्जैन की कचौरियां

by Admin
July 23, 2019
0
206

60 के दशक में अब्दुल मतीन नियाज़ ने एक बच्चों के लिए नज़्म लिखी 'चाट वाला' जिसमें उन्होंने उज्जैन की...

श्वेत श्याम : जीवन के रंग

श्वेत श्याम : जीवन के रंग

by Admin
December 29, 2018
0
70

कितने जीवंत हो सकते है श्वेत श्याम रंग भी ! देखिये सौरभ की नज़रों से .. सौरभ, उज्जैन के प्र्तिबद्ध...

ये ओडीएफ क्या बला है?

ये ओडीएफ क्या बला है?

by Admin
December 28, 2018
0
70

आज अखबार में एक खबर थी कि खुले स्थान पर कुत्ते को शौच कराते हुए किसी व्यक्ति से ओडीएफ++ के...

Next Post
मील के पत्थर

मील के पत्थर

Recommended

खान नदी के किनारे

खान नदी के किनारे

11 years ago
21
Bhasmarti Darshan | 8 Feb 2016

Bhasmarti Darshan | 8 Feb 2016

10 years ago
32

Popular News

    Connect with us

    • मुखपृष्ठ
    • इतिहास
    • दर्शनीय स्थल
    • शहर की हस्तियाँ
    • विशेष
    • जरा हट के
    • खान पान
    • फेसबुक ग्रुप – उज्जैन वाले
    Call us: +1 234 JEG THEME

    सर्वाधिकार सुरक्षित © 2019. प्रकाशित सामग्री को अन्यत्र उपयोग करने से पहले अनिवार्य स्वीकृति प्राप्त कर लेवे.

    No Result
    View All Result
    • मुखपृष्ठ
    • इतिहास
    • दर्शनीय स्थल
    • शहर की हस्तियाँ
    • विशेष
    • जरा हट के
    • खान पान
    • फेसबुक ग्रुप – उज्जैन वाले
      • आगंतुकों का लेखा जोखा

    सर्वाधिकार सुरक्षित © 2019. प्रकाशित सामग्री को अन्यत्र उपयोग करने से पहले अनिवार्य स्वीकृति प्राप्त कर लेवे.

    Login to your account below

    Forgotten Password?

    Fill the forms bellow to register

    All fields are required. Log In

    Retrieve your password

    Please enter your username or email address to reset your password.

    Log In
    This website uses cookies. By continuing to use this website you are giving consent to cookies being used. Visit our Privacy and Cookie Policy.