• Home
    • Home – Layout 1
    • Home – Layout 2
    • Home – Layout 3
    • Home – Layout 4
    • Home – Layout 5
Saturday, December 6, 2025
31 °c
Ujjain
27 ° Sat
27 ° Sun
27 ° Mon
26 ° Tue
  • Setup menu at Appearance » Menus and assign menu to Main Navigation
  • Setup menu at Appearance » Menus and assign menu to Main Navigation
No Result
View All Result
  • Setup menu at Appearance » Menus and assign menu to Main Navigation
No Result
View All Result
Ujjain
No Result
View All Result
Home विशेष साहित्य

दो बैलों की कथा

by Admin
April 23, 2015
in साहित्य, हिंदी लघुकथाएं
0
0
SHARES
62
VIEWS
Share on FacebookShare on Twitter
मुंशी प्रेमचंद 
जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिमान समझा जाता है. हम जब किसी आदमी को पहले दर्जे का बेवकूफ कहना चाहते हैं, तो उसे गधा कहते हैं. गधा सचमुच बेवकूफ है या उसके सीधेपन, उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका निश्चय नहीं किया जा सकता. गायें सींग मारती हैं, ब्याही हुई गाय तो अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कर लेती है. कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर है, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है, किन्तु गधे को कभी क्रोध करते नहीं सुना, न देखा. जितना चाहो गरीब को मारो, चाहे जैसी खराब, सड़ी हुई घास सामने डाल दो, उसके चेहरे पर कभी असंतोष की छाया भी नहीं दिखाई देगी. वैशाख में चाहे एकाध बार कुलेल कर लेता है, पर हमने तो उसे कभी खुश होते नहीं देखा. उसके चेहरे पर स्थाई विषाद स्थायी रूप से छाया रहता है. सुख-दुःख, हानि-लाभ किसी भी दशा में उसे बदलते नहीं देखा. ऋषियों-मुनियों के जितने गुण हैं, वे सभी उसमें पराकाष्ठा को पहुँच गए हैं, पर आदमी उसे बेवकूफ कहता है. सद्गुणों का इतना अनादर!
कदाचित सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं है. देखिए न, भारतवासियों की अफ्रीका में क्या दुर्दशा हो रही है ? क्यों अमरीका में उन्हें घुसने नहीं दिया जाता? बेचारे शराब नहीं पीते, चार पैसे कुसमय के लिए बचाकर रखते हैं, जी तोड़कर काम करते हैं, किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करते, चार बातें सुनकर गम खा जाते हैं फिर भी बदनाम हैं. कहा जाता है, वे जीवन के आदर्श को नीचा करते हैं. अगर वे ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते तो शायद सभ्य कहलाने लगते. जापान की मिसाल सामने है. एक ही विजय ने उसे संसार की सभ्य जातियों में गण्य बना दिया. लेकिन गधे का एक छोटा भाई और भी है, जो उससे कम ही गधा है. और वह है ‘बैल’. जिस अर्थ में हम ‘गधा’ का प्रयोग करते हैं, कुछ उसी से मिलते-जुलते अर्थ में ‘बछिया के ताऊ’ का भी प्रयोग करते हैं. कुछ लोग बैल को शायद बेवकूफी में सर्वश्रेष्ठ कहेंगे, मगर हमारा विचार ऐसा नहीं है. बैल कभी-कभी मारता भी है, कभी-कभी अड़ियल बैल भी देखने में आता है. और भी कई रीतियों से अपना असंतोष प्रकट कर देता है, अतएवं उसका स्थान गधे से नीचा है.
झूरी क पास दो बैल थे- हीरा और मोती. देखने में सुंदर, काम में चौकस, डील में ऊंचे. बहुत दिनों साथ रहते-रहते दोनों में भाईचारा हो गया था. दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक भाषा में विचार-विनिमय किया करते थे. एक-दूसरे के मन की बात को कैसे समझा जाता है, हम कह नहीं सकते. अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है. दोनों एक-दूसरे को चाटकर सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे, विग्रह के नाते से नहीं, केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोनों में घनिष्ठता होते ही धौल-धप्पा होने लगता है. इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफसी, कुछ हल्की-सी रहती है, फिर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता. जिस वक्त ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जोत दिए जाते और गरदन हिला-हिलाकर चलते, उस समय हर एक की चेष्टा होती कि ज्यादा-से-ज्यादा बोझ मेरी ही गर्दन पर रहे.
दिन-भर के बाद दोपहर या संध्या को दोनों खुलते तो एक-दूसरे को चाट-चूट कर अपनी थकान मिटा लिया करते, नांद में खली-भूसा पड़ जाने के बाद दोनों साथ उठते, साथ नांद में मुँह डालते और साथ ही बैठते थे. एक मुँह हटा लेता तो दूसरा भी हटा लेता था.
संयोग की बात, झूरी ने एक बार गोईं को ससुराल भेज दिया. बैलों को क्या मालूम, वे कहाँ भेजे जा रहे हैं. समझे, मालिक ने हमें बेच दिया. अपना यों बेचा जाना उन्हें अच्छा लगा या बुरा, कौन जाने, पर झूरी के साले गया को घर तक गोईं ले जाने में दांतों पसीना आ गया. पीछे से हांकता तो दोनों दाएँ-बाँए भागते, पगहिया पकड़कर आगे से खींचता तो दोनों पीछे की ओर जोर लगाते. मारता तो दोनों सींगे नीची करके हुंकारते. अगर ईश्वर ने उन्हें वाणी दी होती तो झूरी से पूछते-तुम हम गरीबों को क्यों निकाल रहे हो ?
हमने तो तुम्हारी सेवा करने में कोई कसर नहीं उठा रखी. अगर इतनी मेहनत से काम न चलता था, और काम ले लेते. हमें तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था. हमने कभी दाने-चारे की शिकायत नहीं की. तुमने जो कुछ खिलाया, वह सिर झुकाकर खा लिया, फिर तुमने हमें इस जालिम के हाथ क्यों बेंच दिया ?
संध्या समय दोनों बैल अपने नए स्थान पर पहुँचे. दिन-भर के भूखे थे, लेकिन जब नांद में लगाए गए तो एक ने भी उसमें मुंह नहीं डाला. दिल भारी हो रहा था. जिसे उन्होंने अपना घर समझ रखा था, वह आज उनसे छूट गया. यह नया घर, नया गांव, नए आदमी उन्हें बेगाने-से लगते थे.
दोनों ने अपनी मूक भाषा में सलाह की, एक-दूसरे को कनखियों से देखा और लेट गये. जब गांव में सोता पड़ गया तो दोनों ने जोर मारकर पगहा तुड़ा डाले और घर की तरफ चले. पगहे बहुत मजबूत थे. अनुमान न हो सकता था कि कोई बैल उन्हें तोड़ सकेगा, पर इन दोनों में इस समय दूनी शक्ति आ गई थी. एक-एक झटके में रस्सियाँ टूट गईं.
झूरी प्रातः काल सो कर उठा तो देखा कि दोनों बैल चरनी पर खड़े हैं. दोनों की गरदनों में आधा-आधा गरांव लटक रहा था. घुटने तक पांव कीचड़ से भरे हैं और दोनों की आंखों में विद्रोहमय स्नेह झलक रहा है.
झूरी बैलों को देखकर स्नेह से गद्गद हो गया. दौड़कर उन्हें गले लगा लिया. प्रेमालिंगन और चुम्बन का वह दृश्य बड़ा ही मनोहर था.
घर और गाँव के लड़के जमा हो गए. और तालियाँ बजा-बजाकर उनका स्वागत करने लगे. गांव के इतिहास में यह घटना अभूतपूर्व न होने पर भी महत्त्वपूर्ण थी, बाल-सभा ने निश्चय किया, दोनों पशु-वीरों का अभिनन्दन पत्र देना चाहिए. कोई अपने घर से रोटियां लाया, कोई गुड़, कोई चोकर, कोई भूसी.
एक बालक ने कहा- ”ऐसे बैल किसी के पास न होंगे.”
दूसरे ने समर्थन किया- ”इतनी दूर से दोनों अकेले चले आए.’
तीसरा बोला- ‘बैल नहीं हैं वे, उस जन्म के आदमी हैं.’
इसका प्रतिवाद करने का किसी को साहस नहीं हुआ. झूरी की स्त्री ने बैलों को द्वार पर देखा तो जल उठी. बोली -‘कैसे नमक-हराम बैल हैं कि एक दिन वहां काम न किया, भाग खड़े हुए.’
झूरी अपने बैलों पर यह आक्षेप न सुन सका-‘नमक हराम क्यों हैं ? चारा-दाना न दिया होगा तो क्या करते ?’
स्त्री ने रोब के साथ कहा-‘बस, तुम्हीं तो बैलों को खिलाना जानते हो, और तो सभी पानी पिला-पिलाकर रखते हैं.’
झूरी ने चिढ़ाया-‘चारा मिलता तो क्यों भागते ?’
स्त्री चिढ़ गयी-‘भागे इसलिए कि वे लोग तुम जैसे बुद्धुओं की तरह बैल को सहलाते नहीं, खिलाते हैं तो रगड़कर जोतते भी हैं. ये दोनों ठहरे कामचोर, भाग निकले. अब देखूं कहां से खली और चोकर मिलता है. सूखे भूसे के सिवा कुछ न दूंगी, खाएं चाहें मरें.’
वही हुआ. मजूर की बड़ी ताकीद की गई कि बैलों को खाली सूखा भूसा दिया जाए.
बैलों ने नांद में मुंह डाला तो फीका-फीका, न कोई चिकनाहट, न कोई रस !
क्या खाएं ? आशा-भरी आंखों से द्वार की ओर ताकने लगे. झूरी ने मजूर से कहा-‘थोड़ी-सी खली क्यों नहीं डाल देता बे ?’
‘मालकिन मुझे मार ही डालेंगी.’
‘चुराकर डाल आ.’
‘ना दादा, पीछे से तुम भी उन्हीं की-सी कहोगे.’
दूसरे दिन झूरी का साला फिर आया और बैलों को ले चला. अबकी उसने दोनों को गाड़ी में जोता.
दो-चार बार मोती ने गाड़ी को खाई में गिराना चाहा, पर हीरा ने संभाल लिया. वह ज्यादा सहनशील था.
संध्या-समय घर पहुंचकर उसने दोनों को मोटी रस्सियों से बांधा और कल की शरारत का मजा चखाया फिर वही सूखा भूसा डाल दिया. अपने दोनों बालों को खली चूनी सब कुछ दी.
दोनों बैलों का ऐसा अपमान कभी न हुआ था. झूरी ने इन्हें फूल की छड़ी से भी छूता था. उसकी टिटकार पर दोनों उड़ने लगते थे. यहां मार पड़ी. आहत सम्मान की व्यथा तो थी ही, उस पर मिला सूखा भूसा !
नांद की तरफ आंखें तक न उठाईं.
दूसरे दिन गया ने बैलों को हल में जोता, पर इन दोनों ने जैसे पांव न उठाने की कसम खा ली थी. वह मारते-मारते थक गया, पर दोनों ने पांव न उठाया. एक बार जब उस निर्दयी ने हीरा की नाक पर खूब डंडे जमाये तो मोती को गुस्सा काबू से बाहर हो गया. हल लेकर भागा. हल, रस्सी, जुआ, जोत, सब टूट-टाटकर बराबर हो गया. गले में बड़ी-बड़ी रस्सियाँ न होतीं तो दोनों पकड़ाई में न आते.
हीरा ने मूक-भाषा में कहा-भागना व्यर्थ है.’
मोती ने उत्तर दिया-‘तुम्हारी तो इसने जान ही ले ली थी.’
‘अबकी बड़ी मार पड़ेगी.’
‘पड़ने दो, बैल का जन्म लिया है तो मार से कहां तक बचेंगे ?’
‘गया दो आदमियों के साथ दौड़ा आ रहा है, दोनों के हाथों में लाठियां हैं.’
मोती बोला-‘कहो तो दिखा दूं मजा मैं भी, लाठी लेकर आ रहा है.’
हीरा ने समझाया-‘नहीं भाई ! खड़े हो जाओ.’
‘मुझे मारेगा तो मैं एक-दो को गिरा दूंगा.’
‘नहीं हमारी जाति का यह धर्म नहीं है.’
मोती दिल में ऐंठकर रह गया. गया आ पहुंचा और दोनों को पकड़ कर ले चला. कुशल हुई कि उसने इस वक्त मारपीट न की, नहीं तो मोती पलट पड़ता. उसके तेवर देख गया और उसके सहायक समझ गए कि इस वक्त टाल जाना ही भलमनसाहत है.
आज दोनों के सामने फिर वही सूखा भूसा लाया गया, दोनों चुपचाप खड़े रहे.
घर में लोग भोजन करने लगे. उस वक्त छोटी-सी लड़की दो रोटियां लिए निकली और दोनों के मुंह में देकर चली गई. उस एक रोटी से इनकी भूख तो क्या शान्त होती, पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया. यहां भी किसी सज्जन का वास है. लड़की भैरो की थी. उसकी मां मर चुकी थी. सौतेली मां उसे मारती रहती थी, इसलिए इन बैलों से एक प्रकार की आत्मीयता हो गई थी.
दोनों दिन-भर जाते, डंडे खाते, अड़ते, शाम को थान पर बांध दिए जाते और रात को वही बालिका उन्हें दो रोटियां खिला जाती. प्रेम के इस प्रसाद की यह बरकत थी कि दो-दो गाल सूखा भूसा खाकर भी दोनों दुर्बल न होते थे, मगर दोनों की आंखों में रोम-रोम में विद्रोह भरा हुआ था.
एक दिन मोती ने मूक-भाषा में कहा-‘अब तो नहीं सहा जाता हीरा !
‘क्या करना चाहते हो ?’
‘एकाध को सींगों पर उठाकर फेंक दूंगा.’
‘लेकिन जानते हो, वह प्यारी लड़की, जो हमें रोटियां खिलाती है, उसी की लड़की है, जो इस घर का मालिक है, यह बेचारी अनाथ हो जाएगी.’
‘तो मालकिन को फेंक दूं, वही तो इस लड़की को मारती है.
‘लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो.’
‘तुम तो किसी तरह निकलने ही नहीं देते, बताओ, तुड़ाकर भाग चलें.’
‘हां, यह मैं स्वीकार करता, लेकिन इतनी मोटी रस्सी टूटेगी कैसे.’
इसका एक उपाय है, पहले रस्सी को थोड़ा चबा लो. फिर एक झटके में जाती है.’
रात को जब बालिका रोटियां खिला कर चली गई तो दोनों रस्सियां चबने लगे, पर मोटी रस्सी मुंह में न आती थी. बेचारे बार-बार जोर लगाकर रह जाते थे.
साहसा घर का द्वार खुला और वह लड़की निकली. दोनों सिर झुकाकर उसका हाथ चाटने लगे. दोनों की पूंछें खड़ी हो गईं. उसने उनके माथे सहलाए और बोली-‘खोल देती हूँ, चुपके से भाग जाओ, नहीं तो ये लोग मार डालेंगे. आज घर में सलाह हो रही है कि इनकी नाकों में नाथ डाल दी जाएं.’
उसने गरांव खोल दिया, पर दोनों चुप खड़े रहे.
मोती ने अपनी भाषा में पूंछा-‘अब चलते क्यों नहीं ?’
हीरा ने कहा-‘चलें तो, लेकिन कल इस अनाथ पर आफत आएगी, सब इसी पर संदेह करेंगे.
साहसा बालिका चिल्लाई-‘दोनों फूफा वाले बैल भागे जे रहे हैं, ओ दादा! दादा! दोनों बैल भागे जा रहे हैं, ओ दादा! दादा! दोनों बैल भागे जा रहे हैं, जल्दी दौड़ो.
गया हड़बड़ाकर भीतर से निकला और बैलों को पकड़ने चला. वे दोनों भागे. गया ने पीछा किया, और भी तेज हुए, गया ने शोर मचाया. फिर गांव के कुछ आदमियों को भी साथ लेने के लिए लौटा. दोनों मित्रों को भागने का मौका मिल गया. सीधे दौड़ते चले गए. यहां तक कि मार्ग का ज्ञान रहा. जिस परिचित मार्ग से आए थे, उसका यहां पता न था. नए-नए गांव मिलने लगे. तब दोनों एक खेत के किनारे खड़े होकर सोचने लगे, अब क्या करना चाहिए.
हीरा ने कहा-‘मुझे मालूम होता है, राह भूल गए.’
‘तुम भी बेतहाशा भागे, वहीं उसे मार गिराना था.’
‘उसे मार गिराते तो दुनिया क्या कहती ? वह अपने धर्म छोड़ दे, लेकिन हम अपना धर्म क्यों छोडें ?’
दोनों भूख से व्याकुल हो रहे थे. खेत में मटर खड़ी थी. चरने लगे. रह-रहकर आहट लेते रहे थे. कोई आता तो नहीं है.
जब पेट भर गया, दोनों ने आजादी का अनुभव किया तो मस्त होकर उछलने-कूदने लगे. पहले दोनों ने डकार ली. फिर सींग मिलाए और एक-दूसरे को ठेकने लगे. मोती ने हीरा को कई कदम पीछे हटा दिया, यहां तक कि वह खाई में गिर गया. तब उसे भी क्रोध आ गया. संभलकर उठा और मोती से भिड़ गया. मोती ने देखा कि खेल में झगड़ा हुआ चाहता है तो किनारे हट गया.
अरे ! यह क्या ? कोई सांड़ डौंकता चला आ रहा है. हां, सांड़ ही है. वह सामने आ पहुंचा. दोनों मित्र बगलें झांक रहे थे. सांड़ पूरा हाथी था. उससे भिड़ना जान से हाथ धोना है, लेकिन न भिड़ने पर भी जान बचती नजर नहीं आती. इन्हीं की तरफ आ भी रहा है. कितनी भयंकर सूरत है !
मोती ने मूक-भाषा में कहा-‘बुरे फंसे, जान बचेगी ? कोई उपाय सोचो.’
हीरा ने चिंतित स्वर में कहा-‘अपने घमंड में फूला हुआ है, आरजू-विनती न सुनेगा.’
‘भाग क्यों न चलें?’
‘भागना कायरता है.’
‘तो फिर यहीं मरो. बंदा तो नौ दो ग्यारह होता है.’
‘और जो दौड़ाए?’
‘ तो फिर कोई उपाए सोचो जल्द!’
‘उपाय यह है कि उस पर दोनों जने एक साथ चोट करें. मैं आगे से रगेदता हूँ, तुम पीछे से रगेदो, दोहरी मार पड़ेगी तो भाग खड़ा होगा. मेरी ओर झपटे, तुम बगल से उसके पेट में सींग घुसेड़ देना. जान जोखिम है, पर दूसरा उपाय नहीं है.
दोनों मित्र जान हथेली पर लेकर लपके. सांड़ को भी संगठित शत्रुओं से लड़ने का तजुरबा न था.
वह तो एक शत्रु से मल्लयुद्ध करने का आदी था. ज्यों-ही हीरा पर झपटा, मोती ने पीछे से दौड़ाया. सांड़ उसकी तरफ मुड़ा तो हीरा ने रगेदा. सांड़ चाहता था, कि एक-एक करके दोनों को गिरा ले, पर ये दोनों भी उस्ताद थे. उसे वह अवसर न देते थे. एक बार सांड़ झल्लाकर हीरा का अन्त कर देने के लिए चला कि मोती ने बगल से आकर उसके पेट में सींग भोंक दिया. सांड़ क्रोध में आकर पीछे फिरा तो हीरा ने दूसरे पहलू में सींगे चुभा दिया.
आखिर बेचारा जख्मी होकर भागा और दोनों मित्रों ने दूर तक उसका पीछा किया. यहां तक कि सांड़ बेदम होकर गिर पड़ा. तब दोनों ने उसे छोड़ दिया. दोनों मित्र जीत के नशे में झूमते चले जाते थे.
मोती ने सांकेतिक भाषा में कहा-‘मेरा जी चाहता था कि बचा को मार ही डालूं.’
हीरा ने तिरस्कार किया-‘गिरे हुए बैरी पर सींग न चलाना चाहिए.’
‘यह सब ढोंग है, बैरी को ऐसा मारना चाहिए कि फिर न उठे.’
‘अब घर कैसे पहुंचोगे वह सोचो.’
‘पहले कुछ खा लें, तो सोचें.’
सामने मटर का खेत था ही, मोती उसमें घुस गया. हीरा मना करता रहा, पर उसने एक न सुनी. अभी दो ही चार ग्रास खाये थे कि आदमी लाठियां लिए दौड़ पड़े और दोनों मित्र को घेर लिया, हीरा तो मेड़ पर था निकल गया. मोती सींचे हुए खेत में था. उसके खुर कीचड़ में धंसने लगे. न भाग सका. पकड़ लिया. हीरा ने देखा, संगी संकट में है तो लौट पड़ा. फंसेंगे तो दोनों फंसेंगे. रखवालों ने उसे भी पकड़ लिया.
प्रातःकाल दोनों मित्र कांजी हौस में बंद कर दिए गए.
दोनों मित्रों को जीवन में पहली बार ऐसा साबिका पड़ा था कि सारा दिन बीत गया और खाने को एक तिनका भी न मिला. समझ में न आता था, यह कैसा स्वामी है. इससे तो गया फिर भी अच्छा था. यहां कई भैंसे थीं, कई बकरियां, कई घोड़े, कई गधे, पर किसी के सामने चारा न था, सब जमीन पर मुर्दों की तरह पड़े थे.
कई तो इतने कमजोर हो गये थे कि खड़े भी न हो सकते थे. सारा दिन मित्र फाटक की ओर टकटकी लगाए रहते, पर कोई चारा न लेकर आता दिखाई दिया. तब दोनों ने दीवार की नमकीन मिट्टी चाटनी शुरू की, पर इससे क्या तृप्ति होती.
रात को भी जब कुछ भोजन न मिला तो हीरा के दिल में विद्रोह की ज्वाला दहक उठी. मोती से बोला-‘अब नहीं रहा जाता मोती !
मोती ने सिर लटकाए हुए जवाब दिया-‘मुझे तो मालूम होता है कि प्राण निकल रहे हैं.’
‘आओ दीवार तोड़ डालें.’
‘मुझसे तो अब कुछ नहीं होगा.’
‘बस इसी बूत पर अकड़ते थे !’
‘सारी अकड़ निकल गई.’
बाड़े की दीवार कच्ची थी. हीरा मजबूत तो था ही, अपने नुकीले सींग दीवार में गड़ा दिए और जोर मारा तो मिट्टी का एक चिप्पड़ निकल आया. फिर तो उसका साहस बढ़ा उसने दौड़-दौड़कर दीवार पर चोटें कीं और हर चोट में थोड़ी-थोड़ी मिट्टी गिराने लगा.
उसी समय कांजी हौस का चौकीदार लालटेन लेकर जानवरों की हाजिरी लेने आ निकला. हीरा का उद्दंड्डपन्न देखकर उसे कई डंडे रसीद किए और मोटी-सी रस्सी से बांध दिया.
मोती ने पड़े-पड़े कहा-‘आखिर मार खाई, क्या मिला?’
‘अपने बूते-भर जोर तो मार दिया.’
‘ऐसा जोर मारना किस काम का कि और बंधन में पड़ गए.’
‘जोर तो मारता ही जाऊंगा, चाहे कितने ही बंधन पड़ते जाएं.’
‘जान से हाथ धोना पड़ेगा.’
‘कुछ परवाह नहीं. यों भी तो मरना ही है. सोचो, दीवार खुद जाती तो कितनी जाने बच जातीं. इतने भाई यहां बंद हैं. किसी की देह में जान नहीं है. दो-चार दिन यही हाल रहा तो मर जाएंगे.’
‘हां, यह बात तो है. अच्छा, तो ला फिर मैं भी जोर लगाता हूँ.’
मोती ने भी दीवार में सींग मारा, थोड़ी-सी मिट्टी गिरी और फिर हिम्मत बढ़ी, फिर तो वह दीवार में सींग लगाकर इस तरह जोर करने लगा, मानो किसी प्रतिद्वंदी से लड़ रहा है. आखिर कोई दो घंटे की जोर-आजमाई के बाद दीवार ऊपर से लगभग एक हाथ गिर गई, उसने दूनी शक्ति से दूसरा धक्का मारा तो आधी दीवार गिर पड़ी.
दीवार का गिरना था कि अधमरे-से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे, तीनों घोड़ियां सरपट भाग निकलीं. फिर बकरियां निकलीं, इसके बाद भैंस भी खसक गई, पर गधे अभी तक ज्यों के त्यों खड़े थे.
हीरा ने पूछा-‘तुम दोनों क्यों नहीं भाग जाते?’
एक गधे ने कहा-‘जो कहीं फिर पकड़ लिए जाएं.’
‘तो क्या हरज है, अभी तो भागने का अवसर है.’
‘हमें तो डर लगता है. हम यहीं पड़े रहेंगे.’
आधी रात से ऊपर जा चुकी थी. दोनों गधे अभी तक खड़े सोच रहे थे कि भागें, या न भागें, और मोती अपने मित्र की रस्सी तोड़ने में लगा हुआ था. जब वह हार गया तो हीरा ने कहा-‘तुम जाओ, मुझे यहीं पड़ा रहने दो, शायद कहीं भेंट हो जाए.’
मोती ने आंखों में आंसू लाकर कहा-‘तुम मुझे इतना स्वार्थी समझते हो, हीरा हम और तुम इतने दिनों एक साथ रहे हैं. आज तुम विपत्ति में पड़ गए हो तो मैं तुम्हें छोड़कर अलग हो जाऊं ?’
हीरा ने कहा-‘बहुत मार पड़ेगी, लोग समझ जाएंगे, यह तुम्हारी शरारत है.’
मोती ने गर्व से बोला-‘जिस अपराध के लिए तुम्हारे गले में बंधना पड़ा, उसके लिए अगर मुझे मार पड़े, तो क्या चिंता. इतना तो हो ही गया कि नौ-दस प्राणियों की जान बच गई, वे सब तो आशीर्वाद देंगे.’
यह कहते हुए मोती ने दोनों गधों को सींगों से मार-मार कर बाड़े से बाहर निकाला और तब अपने बंधु के पास आकर सो रहा.
भोर होते ही मुंशी और चौकीदार तथा अन्य कर्मचारियों में कैसी खलबली मची, इसके लिखने की जरूरत नहीं. बस, इतना ही काफी है कि मोती की खूब मरम्मत हुई और उसे भी मोटी रस्सी से बांध दिया गया.
एक सप्ताह तक दोनों मित्र वहां बंधे पड़े रहे. किसी ने चारे का एक तृण भी न डाला. हां, एक बार पानी दिखा दिया जाता था. यही उनका आधार था. दोनों इतने दुर्बल हो गए थे कि उठा तक नहीं जाता था, ठठरियां निकल आईं थीं. एक दिन बाड़े के सामने डुग्गी बजने लगी और दोपहर होते-होते वहां पचास-साठ आदमी जमा हो गए. तब दोनों मित्र निकाले गए और लोग आकर उनकी सूरत देखते और मन फीका करके चले जाते.
ऐसे मृतक बैलों का कौन खरीददार होता ? सहसा एक दढ़ियल आदमी, जिसकी आंखें लाल थीं और मुद्रा अत्यन्त कठोर, आया और दोनों मित्र के कूल्हों में उंगली गोदकर मुंशीजी से बातें करने लगा. चेहरा देखकर अंतर्ज्ञान से दोनों मित्रों का दिल कांप उठे. वह क्यों है और क्यों टटोल रहा है, इस विषय में उन्हें कोई संदेह न हुआ. दोनों ने एक-दूसरे को भीत नेत्रों से देखा और सिर झुका लिया.
हीरा ने कहा-‘गया के घर से नाहक भागे, अब तो जान न बचेगी.’ मोती ने अश्रद्धा के भाव से उत्तर दिया-‘कहते हैं, भगवान सबके ऊपर दया करते हैं, उन्हें हमारे ऊपर दया क्यों नहीं आती ?’
‘भगवान के लिए हमारा जीना मरना दोनों बराबर है. चलो, अच्छा ही है, कुछ दिन उसके पास तो रहेंगे. एक बार उस भगवान ने उस लड़की के रूप में हमें बचाया था. क्या अब न बचाएंगे ?’
‘यह आदमी छुरी चलाएगा, देख लेना.’
‘तो क्या चिंता है ? मांस, खाल, सींग, हड्डी सब किसी के काम आ जाएगा.’
नीलाम हो जाने के बाद दोनों मित्र उस दढ़ियल के साथ चले. दोनों की बोटी-बोटी कांप रही थी. बेचारे पांव तक न उठा सकते थे, पर भय के मारे गिरते-प़डते भागे जाते थे, क्योंकि वह जरा भी चाल धीमी हो जाने पर डंडा जमा देता था.
राह में गाय-बैलों का एक रेवड़ हरे-भरे हार में चरता नजर आया. सभी जानवर प्रसन्न थे, चिकने, चपल. कोई उछलता था, कोई आनंद से बैठा पागुर करता था कितना सुखी जीवन था इनका, पर कितने स्वार्थी हैं सब. किसी को चिंता नहीं कि उनके दो बाई बधिक के हाथ पड़े कैसे दुःखी हैं.
सहसा दोनों को ऐसा मालूम हुआ कि परिचित राह है. हां, इसी रास्ते से गया उन्हें ले गया था. वही खेत, वही बाग, वही गांव मिलने लगे, प्रतिक्षण उनकी चाल तेज होने लगी. सारी थकान, सारी दुर्बलता गायब हो गई. आह ! यह लो ! अपना ही हार आ गया. इसी कुएं पर हम पुर चलाने आया करते थे, यही कुआं है.
मोती ने कहा-‘हमारा घर नजदीक आ गया है.’
हीरा बोला -‘भगवान की दया है.’
‘मैं तो अब घर भागता हूँ.’
‘यह जाने देगा ?’
इसे मैं मार गिराता हूँ.
‘नहीं-नहीं, दौड़कर थान पर चलो. वहां से आगे हम न जाएंगे.’
दोनों उन्मत्त होकर बछड़ों की भांति कुलेलें करते हुए घर की ओर दौड़े. वह हमारा थान है. दोनों दौड़कर अपने थान पर आए और खड़े हो गए. दढ़ियल भी पीछे-पीछे दौड़ा चला आता था.
झूरी द्वार पर बैठा धूप खा रहा था. बैलों को देखते ही दौड़ा और उन्हें बारी-बारी से गले लगाने लगा. मित्रों की आंखों से आनन्द के आंसू बहने लगे. एक झूरी का हाथ चाट रहा था.
दढ़ियल ने जाकर बैलों की रस्सियां पकड़ लीं. झूरी ने कहा-‘मेरे बैल हैं.’
‘तुम्हारे बैल कैसे हैं ? मैं मवेसीखाने से नीलाम लिए आता हूँ.’
”मैं तो समझता हूँ, चुराए लिए जाते हो! चुपके से चले जाओ, मेरे बैल हैं. मैं बेचूंगा तो बिकेंगे. किसी को मेरे बैल नीलाम करने का क्या अख्तियार हैं ?’
‘जाकर थाने में रपट कर दूँगा.’
‘मेरे बैल हैं. इसका सबूत यह है कि मेरे द्वार पर खड़े हैं.
दढ़ियल झल्लाकर बैलों को जबरदस्ती पकड़ ले जाने के लिए बढ़ा. उसी वक्त मोती ने सींग चलाया. दढ़ियल पीछे हटा. मोती ने पीछा किया. दढ़ियल भागा. मोती पीछे दौड़ा, गांव के बाहर निकल जाने पर वह रुका, पर खड़ा दढ़ियल का रास्ता वह देख रहा था, दढ़ियल दूर खड़ा धमकियां दे रहा था, गालियां निकाल रहा था, पत्थर फेंक रहा था, और मोती विजयी शूर की भांति उसका रास्ता रोके खड़ा था. गांव के लोग यह तमाशा देखते थे और हँसते थे. जब दढ़ियल हारकर चला गया तो मोती अकड़ता हुआ लौटा. हीरा ने कहा-‘मैं तो डर गया था कि कहीं तुम गुस्से में आकर मार न बैठो.’
‘अब न आएगा.’
‘आएगा तो दूर से ही खबर लूंगा. देखूं, कैसे ले जाता है.’
‘जो गोली मरवा दे ?’
‘मर जाऊंगा, पर उसके काम न आऊंगा.’
‘हमारी जान को कोई जान ही नहीं समझता.’
‘इसलिए कि हम इतने सीधे हैं.’
जरा देर में नाँदों में खली भूसा, चोकर और दाना भर दिया गया और दोनों मित्र खाने लगे. झूरी खड़ा दोनों को सहला रहा था. वह उनसे लिपट गया.
झूरी की पत्नी भी भीतर से दौड़ी-दौड़ी आई. उसने ने आकर दोनों बैलों के माथे चूम लिए.
Tags: मुंशी प्रेमचंद
Admin

Admin

Related Posts

संस्कृतिमवन्ती अवन्तिका :  डॉ. पवन व्यास

संस्कृतिमवन्ती अवन्तिका : डॉ. पवन व्यास

by Admin
December 19, 2017
0
135

हमारी उज्जयिनी प्राचीन काल से ही शिक्षा का महत्त्वपूर्ण केन्द्र रही है । मुझे ऐसा लगता है कि ’गुरुभूमि’ के...

वराहमिहिर : डाॅ. मुरलीधर चाँदनीवाला

वराहमिहिर : डाॅ. मुरलीधर चाँदनीवाला

by Admin
December 18, 2017
0
70

वराहमिहिर तुम पहले व्यक्ति हो वराहमिहिर! जो अवन्तिका से निकले तो फैल गये अखंड भारत में, उज्जयिनी में नहीं होकर...

कहाँ जाऊँ, दिल्ली या उज्जैन ? – निरंजन श्रोत्रिय

कहाँ जाऊँ, दिल्ली या उज्जैन ? – निरंजन श्रोत्रिय

by Admin
December 17, 2017
0
162

कहाँ जाऊँ, दिल्ली या उज्जैन ? मेरा सिर गरम है इसीलिये भरम है सपनों में चलता है आलोचन विचारों के...

भर्तृहरि : डाॅ.मुरलीधर चाँदनीवाला

भर्तृहरि : डाॅ.मुरलीधर चाँदनीवाला

by Admin
December 14, 2017
0
74

भर्तृहरि ------ भर्तृहरि लौट-लौट आते हैं अवन्ती में, खड़े होते हैं कल्पलता के नीचे कभी मौन,कभी मुखर। वैराग्य के जंगल...

हे उज्जयिनी! तू बुला ले अपने पास।

हे उज्जयिनी! तू बुला ले अपने पास।

by Admin
December 7, 2017
0
266

  डाॅ.मुरलीधर चाँदनीवाला   बरसों से भटक रहा हूँ इधर-उधर जीवन बहती नदी की तरह निकल गया बहुत आगे, अब बैठता...

उज्जयिनी जयते : आचार्य श्रीनिवास रथ

उज्जयिनी जयते : आचार्य श्रीनिवास रथ

by Admin
December 5, 2017
0
51

-- महाकालपूजास्वरललिता कालिदासकविताकोमलता भुवनमलंकुरुते। उज्जयिनी जयते।। -- सान्दीपनिसन्दीपितसंस्कृति-शिक्षापरम्परा प्रतिपलमञ्जुलदीपशिखोज्ज्वलमंगलनाथधरा। देवलोकरुचिरा गगनतले ललिते उज्जयिनी जयते।। -- उदयनवीणावादनपुलकितवदना संकुचिता वासवदत्ता चकिताऽऽकुलिता सुप्तेवालिखिता।...

Next Post

ईदगाह

Recommended

Bhasmaarti Darshan | 7 june 2015

Bhasmaarti Darshan | 7 june 2015

11 years ago
17
सुनील पारीक

सुनील पारीक

11 years ago
27

Popular News

    Connect with us

    • मुखपृष्ठ
    • इतिहास
    • दर्शनीय स्थल
    • शहर की हस्तियाँ
    • विशेष
    • जरा हट के
    • खान पान
    • फेसबुक ग्रुप – उज्जैन वाले
    Call us: +1 234 JEG THEME

    सर्वाधिकार सुरक्षित © 2019. प्रकाशित सामग्री को अन्यत्र उपयोग करने से पहले अनिवार्य स्वीकृति प्राप्त कर लेवे.

    No Result
    View All Result
    • मुखपृष्ठ
    • इतिहास
    • दर्शनीय स्थल
    • शहर की हस्तियाँ
    • विशेष
    • जरा हट के
    • खान पान
    • फेसबुक ग्रुप – उज्जैन वाले
      • आगंतुकों का लेखा जोखा

    सर्वाधिकार सुरक्षित © 2019. प्रकाशित सामग्री को अन्यत्र उपयोग करने से पहले अनिवार्य स्वीकृति प्राप्त कर लेवे.

    Login to your account below

    Forgotten Password?

    Fill the forms bellow to register

    All fields are required. Log In

    Retrieve your password

    Please enter your username or email address to reset your password.

    Log In
    This website uses cookies. By continuing to use this website you are giving consent to cookies being used. Visit our Privacy and Cookie Policy.