उज्जयिनी का शाब्दिक अर्थ है विजेता या जयनगरी। कहा जाता है कि प्राचीनकाल में त्रिपुर नामक दानव ने ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर देवताओं को परेशान करने लगा। देवताओं ने शिव के कथनानुसार रक्तदन्तिका चण्डिका देवी की अराधना कर उन्हें प्रसन्न किया। देवी ने प्रसन्न होकर शंकर को महापाशुपत अस्र दिया, जिसके द्वारा उन्होंने उस मायावी त्रिपुर को तीन खण्डों में काट दिया, इस प्रकार त्रिपुर को उज्जिन ( बुरी तरह से पराजित ) किया गया। इस प्रकार इस स्थान का नाम उज्जयिनी पड़ा।
अवंति का नामाकरण के बारे में उल्लेख किया है कि प्राचीन ईशान कल्प में जब दानवों ने देवगणों को पराजित कर दिया, तब वे सुमेरु शिखर पर एकत्रित हो गये। वहीं उन्हे आकाशवाणी सुनाई पड़ी कि वे सभी कुशीस्थल जाएँ, वहीं उनके समस्या का समाधान होगा। जब वे कुशीस्थल गये, तो पाया कि वहाँ सभी लोग सदाचारी है, ॠषि गंधर्व तपस्यारत रहते हैं। सभी जगह सुख- शान्ति है। वहाँ के अनेक तीर्थों मे स्नानादि कर वे विगत कल्मष हुए तथा पुनः स्वर्ग को प्राप्त कर सके। चूँकि प्रत्येक कल्पों में यह स्थान देवता, तीर्थ, औधषि तथा प्राणियों का रक्षण ( अपन ) करती आयी है। अतः इसे अवंति के नाम से जाना गया।
अन्य नाम :-
वर्तमान नाम उज्जैन उज्जयिनी का ही अपभ्रंश है। पालिग्रंथों में इसका नाम उज्जैनी है, वहीं प्राकृत ग्रंथ इसे उजेनी लिखते हैं। रोमन इतिहासकार टॉलेमी इस स्थान का उल्लेख “ओजन’ नाम से करता है। इसके अतिरिक्त इस नगर के कई अन्य नाम भी हैं — सुवर्णश्रृंगार, कुशस्थली, अवन्तिका, अमरावत, चूड़ामणि, पद्मावती, शिवपुरी, कुमुद्वती आदि। बोधम्यन धर्मसुत्र में इसका अवन्ति नाम आया है, वहीं स्कंदपुराण का एक भाग अवन्ति- खण्ड के नाम से प्रसिद्ध है। वाल्मीकि ने अपनी रामायण में अवन्ति- राष्ट्र की चर्चा की