60 के दशक में अब्दुल मतीन नियाज़ ने एक बच्चों के लिए नज़्म लिखी ‘चाट वाला’ जिसमें उन्होंने उज्जैन की कचौरियां का ज़िक्र किया। मुलाहिजा फ़रमाइए नज़्म और मज़े लीजिये ख़स्ता कचौरियां का-
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पकवान क्या मज़े के लाता है चाट वाला, ले कर बड़ा सा थैला आता है चाट वाला
बम्बई की भेल-पूरी उज्जैन की कचौरी, खा कर इन्हें हुई है हर इक ज़बाँ चटोरी
रगड़ा मसाला बच्चों जिस शख़्स ने न खाया, समझो कि ज़िंदगी का उस ने मज़ा न पाया
टिकियाँ ये आलूओं की इस पर मज़े के छोले, लज़्ज़त जो उन की पाए गूँगा ज़बान खोले
देखो दही-बड़ा तो आता है मुँह में पानी, अक्सर तो नाम उन का लाता है मुँह में पानी
यूँ सुर्ख़ से तुले हैं ये पपड़ियाँ समोसे, जो इक नज़र भी देखे खाने की बात सोचे
गर्मा-गरम पकौड़े चटनी फिर इमलियों की, आलू बड़े मज़े के मिर्चें भी तेज़ तीखी
खाना ज़रूर बच्चो आख़िर में पानी पूरी, इस को अगर न खाओ फिर चाट है अधूरी
लिखी ‘नियाज़’ ने भी ये नज़्म चाट खा कर, तुम भी सुनाओ बच्चो सब को ये नज़्म गा कर
– अब्दुल मतीन नियाज़