
ब्रह्मपुराण में भी क्षिप्रा नदी का उल्लेख मिलता है। संस्कृत के महाकवि कालिदास ने अपने काव्य ग्रंथ ‘मेघदूत’ में क्षिप्रा को उद्धृत किया है, तथा इसे अवंति राज्य की प्रधान नदी कहा है। महाकाल की नगरी उज्जैन, क्षिप्रा के तट पर बसी है। स्कंद पुराण में क्षिप्रा नदी की महिमा लिखी है। पुराण के अनुसार यह नदी अपने उद्गम स्थल बहते हुए चंबल नदी से मिल जाती है। प्राचीन मान्यता है कि प्राचीन समय में इसके तेज बहाव के कारण ही इसका नाम क्षिप्रा प्रचलित हुआ।
क्षिप्रा नदी का उद्गम स्थल मध्यप्रदेश के महू छावनी से लगभग 17 किलोमीटर दूर जानापाव की पहाडिय़ों से माना गया है। यह स्थान भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम का जन्म स्थान भी माना गया है।
क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित सांदीपनी आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और उनके प्रिय मित्र सुदामा ने विद्या अध्ययन किया था। हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित है कि राजा भर्तृहरि और गुरु गोरखनाथ ने भी इस पवित्र नदी के तट पर तपस्या से सिद्धि प्राप्त की।
क्षिप्रा , गंगा, सरस्वती और नर्मदा आदि ऐसी अनेक नदियां हैं, जो पवित्र मानी जाती हैं। ये नदियां ना तो मैली होती हैं और ना ही इनका जल अशुद्ध होता है। उज्जैन में मां क्षिप्रा का काफी पौराणिक महत्व है||
-साभार Ujjain Ultimate के लिए पंकज शर्मा