फांसी की सजा : अनोखी धारणायें

आपने ये बात सुनी होगी कि फांसी के फंदे पर अक्सर मुजरिम को सूर्योदय से पहले लटकाया जाता है या फांसी के समय पर कुछ ही लोग होते हैं ? क्यों जज सज़ा सुनाने के बाद पेन की निब तोड़ देता है ? आइये जानते है फांसी जुड़ी ऐसी ही कुछ ख़ास बातें l

जेल प्रशासन के लिए सबसे बड़ा काम है फांसी देना l इसलिए इसको सुबह ही निपटा दिया जाता है, ताकी फिर इसकी वजह से दिन के दूसरे काम प्रभावित ना हों l एक कारण ये भी है की मुजरिम के घरवालों को इतना टाइम मिल जाए वो अंतिम संस्कार की तैयारी कर लें l

किसी को फांसी होना समाज के लिए एक बड़ी खबर हो सकती है, मीडिया और समाज की तीखी प्रतिक्रिया बचने के लिए से मुजरिम को सुबह के वक़्त फांसी दी जाती है क्यूंकि मीडिया और समाज सुबह के वक़्त इतने सक्रिय नही होते हैं |

फांसी देने का काम केवल कुछ लोगों की मौजूदगी में ही किया जाता है जिसमे से एक भी मुजरिम का परिवार वाला नही होता l फांसी देते वक्त जेल अधीक्षक, एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट या उनका भेजा कोई और प्रतिनिधि, कैदी की जांच करने वाला एक डॉक्टर और जल्लाद मौजूद रहते है, इसके अलावा चंद पुलिसवालों की मौजूदगी में फांसी दी जाती है ।

फांसी के फंदे पर मुजरिम को लटकाने का समय तो सूर्योदय से पहले ही होता है, पर उसे कितनी देर तक लटकाया जायेगा इसका कोई निर्धारित समय नही है, हालांकि 10 मिनिट बाद डॉक्टर फांसी के फंदे में ही एक बार जांच करते हैं, जिसके बाद लाश को फंदे से उतार लिया जाता है l वैसे जब फांसी की सजा सुनाई जाती होगी, मुजरिम खुद के लिए तो तभी मर जाता होगा तो इस बात से क्या फर्क पड़ता है कितनी देर लटकाया जाएगा l

जल्लाद सजायाफ्ता मुजरिम को फंसी देने से पहले यह कह कर माफ़ी मांगता है “मुझे माफ कर दो, हिंदू भाईयों को राम-राम, मुस्लिम को सलाम, हम क्या कर सकते है हम तो हुकुम के गुलाम है” इन शब्दों को बोलने के बाद जल्लाद फांसी के तख्ते का हथ्था खीचता है l जरा सोचिए कितना मुश्किल होता होगा जल्लाद के लिए ऐसा करना ?

ऐसा नही है कि मुजरिम अपनी आखरी ख्वाहिश में कुछ भी मांग सकता है, इसके लिए भी जेल प्रशासन के ख़ास नियम हैं l मुजरिम अपने परिजन से मिलने, कोई खास खाने की फरमाइश या फिर कोई धर्म ग्रंथ पढ़ने की इच्छा करता है तो जेल प्रशासन उसे पूरी करता है | इसके अलावा मुजरिम कुछ और चाहता है और वो जेल प्रशासन के मैन्युअल में दर्ज हो तो जेल प्रशासन मुजरिम की इच्छाएं पूरी करता है।

एक बार फांसी की सजा सुनाने के बाद जज पेन की निब तोड़ देता है ताकि इतना बड़ा अपराध कोई न करे की उसे इतनी बड़ी सजा देनी पड़े l साथ ही जज उस पेन का इस्तेमाल नहीं करता है ताकि किसी की मौत बन जाने वाला पेन दूसरे के भविष्य का फैसला न कर सके l

मौत की सजा लिखने के बाद पेन की निब को तोड़ दिया जाता है ताकि इन्सान के साथ साथ पेन की भी मौत हो सके l मान्यता यह भी है कि फैसले को लेकर होने वाले प्रायश्चित या अपराधबोध को लेकर जज पेन की निब तोड़ देते हैं।

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