सिंहस्थ महापर्व, गुरुवार (5 मई) : एक हजार से अधिक नागा साधुओं को जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी ने दीक्षा दी। इनमें 8 साल से लेकर 60 साल तक के साधु शामिल थे । सबसे पहले जूना अखाड़ा की छावनी में सभी नागा दीक्षार्थियों का मुंडन किया गया। इसके बाद उन्होंने क्षिप्रा नदी में अपना व अपने परिवार का पिंडदान किया। इसके बाद रात को गोपनीय प्रक्रिया को तहत सभी को शपथ दिलाई गई। शुक्रवार को इन सभी को नया नाम दिया जाएगा।
क्यों कहते हैं इन नागाओं को ‘खूनी नागा’ ?
देश में 4 स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। इसी मेले में नए नागा साधुओं को दीक्षा दी जाती है। हरिद्वार में जिन्हें नागा बनाया जाता है, उन्हें बर्फानी नागा कहते हैं। इसी तरह इलाहाबाद में दीक्षा लेने वाले नागा को राजराजेश्वर व नासिक में दीक्षा लेने वाले को खिचड़िया नागा कहते हैं। उज्जैन में दीक्षा लेने वाले साधुओं को खूनी नागा कहा जाता है, क्योंकि किसी समय यहां शैव व वैष्णव साधुओं में खूनी संघर्ष हुआ था।